Skip to main content

मालवी के लिए रचनात्मक पहल

विक्रम विश्वविद्यालय ने हमेशा विद्या दान के साथ मालवा और मालवी के प्रसार और विस्तार में महती भूमिका निभाई है। हाल ही में विक्रम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष और मालवीमना डॉ शैलेंद्रकुमार शर्मा ने अथक परिश्रम कर विश्वविद्यालम में मालवी के इतिहास और साहित्य पर अकादमिक कार्य के गहन गंभीर प्रयत्न किये हैं।


विक्रम विश्वविद्यालय में मालवी के लिये रचनात्मक पहल





उज्जैन मालवा का स्पंदित नगर रहा है.महापर्व कुंभ की विराटता,शिप्रा का आसरा,भर्तहरि की भक्ति और महाकालेश्वर का वैभव इस पुरातन पुण्य नगरी को विशिष्ट बनाता है. मालवी के सिलसिले में बात करें तो पद्म-भूषण प.सूर्यनारायण व्यास के अनन्य प्रेम से ही पचास के दशक में मालवी कवि सम्मेलनों की शुरूआत उज्जैन से हुई.डाँ.शिवमंगल सिंह सुमन उज्जैन आकर क्या बसे जैसे पूरा मालवा मालामाल हो गया.विक्रम विश्वविद्यालय ने हमेशा विद्या दान के साथ मालवा और मालवी के प्रसार और विस्तार में महती भूमिका निभाई है. हाल ही में विक्रम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष और मालवीमना डाँ शैलेंद्रकुमार शर्मा ने अथक परिश्रम कर विश्वविद्यालम में मालवी के इतिहास और साहित्य पर अकादमिक कार्य के गहन गंभीर प्रयत्न किये है.मालवी जाजम के विशेष आग्रह पर डाँ . शर्मा ने विक्रम विश्वविद्यालय में किये जा रहे कार्यों का संक्षिप्त विवरण भेजा है .मालवी के विकास हेतु अकादमिक स्तर पर विक्रम विश्वविद्यालय के इस सह्र्दय पहल की मुक्त कंठ से प्रशंसा की जानी चाहिये.

संजय पटेल

मालवी लोक संस्कृति के संरक्षण-संवर्द्धन के लिए व्यापक प्रयासों की दरकार है। इस दिशा में हाल के दशकों में हुए प्रयासों की ओर संकेत दे रहा हूँ।



विक्रम विश्वविद्यालयों से एक साथ कई शोध दिशाओं में मालवी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति को लेकर काम हुआ है और आज भी जारी है। मालवी भाषा और उसकी उपबोलियों - सोंधवाड़ी, रजवाड़ी, दशोरी, उमरवाड़ी आदि पर काम हुआ है। साथ ही निमाड़ी भीली और बरेली पर भी काम हुआ है और आज भी जारी है। मालवी भाषा और उसकी उपबोलियों-सोंधवाड़ी, रजवाड़ी, दशोरी, उमरवाड़ी आदि पर काम हुआ है। साथ ही निमाड़ी, भीली और बरेली पर भी काम हुआ है। जहॉं तक मालवी साहित्य की बात है आधुनिक मालवी कविता के शीर्षस्थ हस्ताक्षरों यथा - आनंदराव दुबे, नरेन्द्रसिंह तोमर, मदनमोहन व्यास, नरहरि पटेल, हरीश निगम, सुल्तान मामा, बालकवि बैरागी, डॉ. शिव चौरसिया, चन्द्रशेखर दुबे आदि पर काम हो चुका है। और भी कई हस्ताक्षरों पर काम जारी है, इनमें मोहन सोनी, श्रीनिवास जोशी, जगन्नाथ विश्व, झलक निगम आदि शामिल है।



मालवी संस्कृति के विविध पक्ष यथा - व्रत, पूर्व, उत्सव के गीत, लोकदेवता साहित्य,श्रंगारिका लोक गीत, हीड़ काव्य, माच परम्परा, संझा पर्व, चित्रावण, मांडणा आदि पर कार्य हो चुका हे। मालवी की विरद बखाण, गाथा साहित्य, लोकोक्ति आदि पर भी कार्य सम्पन्न हो गया है।


हिन्दी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय में विश्वभाषा हिंदी संग्रहालय एवं अभिलेखन केन्द्र की शुरुआत हुई है। इसमें मालवी लोक संस्कृति को लेकर विशेष कार्य चल रहा है। इस हेतु मालवी संस्कृति के समेकित रूपांकन एवं अभिलेखन की दिशा में प्रयास जारी है। यहॉं मालवी के शीर्ष रचनाकारों के परिचयात्मक विवरण, कविता एवं चित्रों की दीर्घा संजोयी जा रही है। चित्रावण, सॉंझी, मांडणा सहित मालवा क्षेत्र के कलारूपों को भी इस संग्रहालय में संजोया जाएगा। मालवी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विविध पक्षों से सम्बद्ध साहित्य, लेख एवं सूचनाओं का दस्तावेजीकरण भी इस केन्द्र में किया जा रहा है। इस केन्द्र में निमाड़ी, भीली, बरेली, सहरिया जैसी बोलियों के अभिलेखन की दिशा में कार्य जारी है।

मध्यप्रदेश आदिवासी लोक कला अकादमी ने हाल के बरसों में मालवी-निमाड़ी-भीली-बरेली पर एकाग्र महत्वपूर्ण पुस्तके, मोनोग्राफ़ आदि प्रकाशित किए हैं, साथ ही "चौमासा' पत्रिका में भी महत्वपूर्ण सामग्री संजोई जा रही है।

हाल में म.प्र. के विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में स्नातक स्तर पर हिन्दी साहित्य के विद्यार्थियों के लिए एक प्रश्न पत्र मालवी का निर्धारित किया गया है। इसमें मालवी के प्रतिनिधि कवियों की रचनाएँ पढ़ाई जा रही हैं।विक्रम विश्वविद्यालय में एम.ए. (हिन्दी) के पाठ्यक्रम में मालवी साहित्य का एक प्रश्नपत्र लगाया गया है। ऐसा ही एक प्रश्न पत्र "जनपदीय भाषा मालवी के लोक साहित्य' पर चल रहा है।

विश्वविद्यालय मालवी के उन्न्यन के लिये कृत-संकल्पित है और इस दिशा में रचनात्मक सुझावों का स्वागत करेगा.


इन सारे प्रयत्नॊं के साथ ब्लाँग के रूप में मालवी जाजम के अवतरण को एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में देखा जाना चाहिये.इंटरनेट के अभ्युदय के बाद मालवी जाजम की शुरूआत रेखांकित करने योग्य घटना है.


इन सब प्रयत्नों के बावजूद नई पीढ़ी को मालवी की ओर लाने के गंभीर प्रयत्न होने चाहिये और इसके लिये दर-असल मालवी परिवारों को ही बच्चों के साथ बतियाने में गौरव अनुभव करना होगा.बोलांगा तो बचेगी मालवी.


Bkk News


Bekhabaron Ki Khabar - बेख़बरों की खबर


Bekhabaron Ki Khabar, magazine in Hindi by Radheshyam Chourasiya / Bekhabaron Ki Khabar: Read on mobile & tablets - http://www.readwhere.com/publication/6480/Bekhabaron-ki-khabar




Comments

मध्यप्रदेश समाचार

देश समाचार

Popular posts from this blog

खाटू नरेश श्री श्याम बाबा की पूरी कहानी | Khatu Shyam ji | Jai Shree Shyam | Veer Barbarik Katha |

संक्षेप में श्री मोरवीनंदन श्री श्याम देव कथा ( स्कंद्पुराणोक्त - श्री वेद व्यास जी द्वारा विरचित) !! !! जय जय मोरवीनंदन, जय श्री श्याम !! !! !! खाटू वाले बाबा, जय श्री श्याम !! 'श्री मोरवीनंदन खाटू श्याम चरित्र'' एवं हम सभी श्याम प्रेमियों ' का कर्तव्य है कि श्री श्याम प्रभु खाटूवाले की सुकीर्ति एवं यश का गायन भावों के माध्यम से सभी श्री श्याम प्रेमियों के लिए करते रहे, एवं श्री मोरवीनंदन बाबा श्याम की वह शास्त्र सम्मत दिव्यकथा एवं चरित्र सभी श्री श्याम प्रेमियों तक पहुंचे, जिसे स्वयं श्री वेद व्यास जी ने स्कन्द पुराण के "माहेश्वर खंड के अंतर्गत द्वितीय उपखंड 'कौमारिक खंड'" में सुविस्तार पूर्वक बहुत ही आलौकिक ढंग से वर्णन किया है... वैसे तो, आज के इस युग में श्री मोरवीनन्दन श्यामधणी श्री खाटूवाले श्याम बाबा का नाम कौन नहीं जानता होगा... आज केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व के भारतीय परिवार ने श्री श्याम जी के चमत्कारों को अपने जीवन में प्रत्यक्ष रूप से देख लिया हैं.... आज पुरे भारत के सभी शहरों एवं गावों में श्री श्याम जी से सम्बंधित संस्थाओं...

आधे अधूरे - मोहन राकेश : पाठ और समीक्षाएँ | मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे : मध्यवर्गीय जीवन के बीच स्त्री पुरुष सम्बन्धों का रूपायन

  आधे अधूरे - मोहन राकेश : पीडीएफ और समीक्षाएँ |  Adhe Adhure - Mohan Rakesh : pdf & Reviews मोहन राकेश और उनका आधे अधूरे - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न नाट्य लेखक और कथाकार मोहन राकेश का जन्म  8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में  हुआ। उन्होंने  पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेज़ी में एम ए उपाधि अर्जित की थी। उनकी नाट्य त्रयी -  आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस और आधे-अधूरे भारतीय नाट्य साहित्य की उपलब्धि के रूप में मान्य हैं।   उनके उपन्यास और  कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं।  उनकी खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के महारथी थे और उनकी भाषा में गज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है। कहानी से लेकर उपन्यास तक उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बहुत सशक्त रूप में अभिव्यक्त हुई है।  मोहन राकेश की कहानियां नई कहानी को एक अपूर्व देन के रूप में स्वीकार की जाती ...

दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा

अमरवीर दुर्गादास राठौड़ : जिण पल दुर्गो जलमियो धन बा मांझल रात। - प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा माई ऐड़ा पूत जण, जेहड़ा दुरगादास। मार मंडासो थामियो, बिण थम्बा आकास।। आठ पहर चौसठ घड़ी घुड़ले ऊपर वास। सैल अणी हूँ सेंकतो बाटी दुर्गादास।। भारत भूमि के पुण्य प्रतापी वीरों में दुर्गादास राठौड़ (13 अगस्त 1638 – 22 नवम्बर 1718)  के नाम-रूप का स्मरण आते ही अपूर्व रोमांच भर आता है। भारतीय इतिहास का एक ऐसा अमर वीर, जो स्वदेशाभिमान और स्वाधीनता का पर्याय है, जो प्रलोभन और पलायन से परे प्रतिकार और उत्सर्ग को अपने जीवन की सार्थकता मानता है। दुर्गादास राठौड़ सही अर्थों में राष्ट्र परायणता के पूरे इतिहास में अनन्य, अनोखे हैं। इसीलिए लोक कण्ठ पर यह बार बार दोहराया जाता है कि हे माताओ! तुम्हारी कोख से दुर्गादास जैसा पुत्र जन्मे, जिसने अकेले बिना खम्भों के मात्र अपनी पगड़ी की गेंडुरी (बोझ उठाने के लिए सिर पर रखी जाने वाली गोल गद्देदार वस्तु) पर आकाश को अपने सिर पर थाम लिया था। या फिर लोक उस दुर्गादास को याद करता है, जो राजमहलों में नहीं,  वरन् आठों पहर और चौंसठ घड़ी घोड़े पर वास करता है और उस पर ही बैठकर बाट...