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महात्मा ज्योतिबा फुले की 193 जयंती पर विशेष


महान समाज सुधारक थे महात्मा ज्योतिबा फुले
महात्मा ज्योतिबा फुले भारत के महान व्यक्तित्वों में से एक हैं। ये एक समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक, विचारक, क्रान्तिकारी के साथ अनन्य प्रतिभाओं के धनी थे।

जन्म व प्रारंभिक जीवन –
ज्योतिराव गोविंदराव फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 ईo को तात्कालिक ब्रिटिश भारत के खानवाडी (पुणे) में हुआ था। इनकी माता का नाम चिमनाबाई और पिता का नाम गोविंदराव था। इनकी मात्र एक वर्ष की अवस्था में ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद इनके पालन पोषण के लिए सगुणाबाई नामक एक दाई को लगाया गया। इन्हें महात्मा फुले और ज्यतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है।

कैसे पड़ा ‘फुले’ नाम –
इनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से आकर यहाँ बसा था। यहाँ आकर इन्होंने फूलों का काम शुरू किया और उससे गजरा व माला इत्यादि बनाने का काम शुरू किया। इसलिए ये ‘फुले’ के नाम से जाने गए।

ज्योतिबा की शिक्षा –
इन्होंने प्रारंभ में मराठी भाषा में शिक्षा प्राप्त की। परन्तु बाद में जाति भेद के कारण बीच में ही इनकी पढ़ाई छूट गयी। बाद में 21 वर्ष की अवस्था में इन्होंने अंग्रेजी भाषा में मात्र 7 वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की।

वैवाहिक जीवन –

इनका विवाह सन् 1840 ईo में सावित्री बाई फुले से हुआ। ये बाद में स्वयं एक प्रसिद्ध स्वयंसेवी महिला के रूप में सामने आयीं। स्त्री शिक्षा और दलितों को शिक्षा का अधिकार दिलाने के अपने उद्देश्य में दोनों पति-पत्नी ने साथ मिलकर कार्य किया।

स्कूल की स्थापना:-
शिक्षा के क्षेत्र में औपचारिक रूप से कुछ करने के उद्देश्य से इन्होने सन् 1848 ईo में एक स्कूल खोला। स्त्री शिक्षा और उनकी दशा सुधारने के क्षेत्र में यह पहला कदम था। परन्तु इसके बाद एक और समस्या आयी कि लड़कियों को पढ़ाने के लिए कोई शिक्षिका नहीं मिली। तब इन्होने दिन रात एक करके स्वयं यह कार्य किया और पत्नी सावित्री बाई फुले को इस काबिल बनाया। उनके इस कार्य में कुछ उच्च वर्ग के पितृसत्तात्मक विचारधारावादियों ने उनके कार्य में वाधा डालने की कोशिश की। परन्तु ज्योतिबा नहीं रुके तो उनके पिता पर दबाव दाल कर इन्हे पत्नी सहित घर से निकलवा दिया। इससे कुछ समय के लिए उनके कार्य व जीवन में वाधा जरूर आयी। परन्तु शीघ्र ही वे फिर अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर हो गए।

सामाजिक कार्य –
इन्होने दलितों व महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये। 24 सितंबर 1873 ईo को इन्होंने महाराष्ट्र में सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इन्होने समाज के सभी वर्गों के लिए शिक्षा प्रदान किये जाने की मुखालफत की। ये भारतीय समाज में प्रचलित जाति व्यवस्था के घोर विरोधी थे। इन्होने समाज के जाति आधारित विभाजन का सदैव विरोध किया। इन्होंने जाति प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से बिना पंडित के ही विवाह संस्कार प्रारंभ किया। इसके लिए बॉम्बे हाई कोर्ट से मान्यता भी प्राप्त की। इन्होंने बाल-विवाह का विरोध किया। ये विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे।

महात्मा ज्योतिबा फुले का साहित्य –
ज्योतिबा बहुमुखी प्रतिभा के  धनी थे। ये उच्च कोटि के लेखक भी थे। इनके द्वारा लिखी गयी प्रमुख पुस्तकें निम्नलिखित हैं – गुलामगिरी (1873), क्षत्रपति शिवाजी, अछूतों की कैफियत, किसान का कोड़ा, तृतीय रत्न, राजा भोसला का पखड़ा इत्यादि।

महात्मा की उपाधि –

1873 ईo में सत्य शोधक समाज की स्थापना के बाद इनके सामाजिक कार्यों की सराहना देश भर में होने लगी। इनकी समाजसेवा को देखते हुए मुंबई की एक विशाल सभा में 11 मई 1888 ईo को विट्ठलराव कृष्णाजी वंडेकर जी ने इन्हें महात्मा की उपाधि से सम्मानित किया।

मृत्यु – इनकी मृत्यु 28 नवंबर 1890 ईo को 63 वर्ष की अवस्था में पुणे (महाराष्ट्र) में हो गयी।



- किशोर कुमार भाटी

राष्ट्रपति पुरस्कार सम्मानित शिक्षक

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