‘कोविड-19’ को और भी अधिक फैलने से रोकने की अप्रत्याशित चुनौती का सामना करते हुए पूरे देश ने अद्भुत एकजुटता एवं संयम का परिचय दिया है। जब पहली बार लॉकडाउन किया गया, तो यह विशेषकर इस विशाल देश में और अधिक असंभव आइडिया प्रतीत हो रहा था। हालांकि, अब तो लॉकडाउन बढ़ाने के बाद भी लोग स्वयं के साथ-साथ अपने साथी नागरिकों को भी वायरस से बचाने के अपने संकल्प में दृढ़प्रतिज्ञ बने हुए हैं। जिस तरह से 1.30 अरब भारतीयों ने इस महामारी के खिलाफ व्यापक एकजुटता दिखाई है वह विश्व इतिहास में अभूतपूर्व है। आने वाली पीढ़ियों को निश्चित तौर पर आश्चर्य होगा कि भारत जैसे अत्यंत विविधताओं वाले देश में यह आखिरकार कैसे संभव हो पाया था। मुझे दृढ़ विश्वास है कि यह सब देश में असाधारण नेतृत्व की बदौलत ही संभव हो पाया है।
संक्रमण बेशक फैल रहा है और जीत के लिए अभी लंबी लड़ाई लड़नी होगी। फिर भी, हम विश्वास से लबरेज हैं, क्योंकि दुनिया के अन्य हिस्सों में संक्रमित रोगियों की निरंतर बढ़ती संख्या की तुलना में भारत में इसका प्रकोप काफी सीमित है। हालांकि, यह अत्यंत आश्चर्यजनक है क्योंकि भारत न केवल एक विकासशील देश है, बल्कि यहां सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी बुनियादी ढांचागत सुविधाएं एवं संसाधन बेहद सीमित हैं। यही नहीं, भारत काफी अधिक जनसंख्या घनत्व वाला एक विशाल देश है।
यदि वायरस से लोगों की जिंदगी की रक्षा करने का एकमात्र तरीका अपने आसपास के लोगों से सुरक्षित दूरी बनाए रखना ही होता, तो हम यह लड़ाई शुरू होने से पहले ही हार गए होते। जब पूरे देश में साक्षरता के स्तर के साथ-साथ समाचार मीडिया तक पहुंच भी एकसमान नहीं है, तो एक विशाल आबादी के समस्त लोगों को समान संदेश आखिरकार कैसे मिल जाता है? क्या सांस्कृतिक बाधाओं के बारे में कुछ भी बताना अभी बाकी है? दरअसल, किसी भी सरकार के लिए समूचे विशाल देश में इस तरह के प्रतिबंध को लागू करना असंभव होगा, यदि वह लोगों को आश्वस्त करने में विफल रहेगी।
इसके बावजूद, हम सभी ने असंभव को संभव कर दिखाया है। बेशक कई असामान्यताएं थीं, लेकिन वे असामान्यताएं थीं; वे अच्छी तरह से स्वयं ही स्पष्ट थीं। मार्च के महीने में देश की राजधानी में तब्लीगी जमात की घटना और लॉकडाउन की शुरुआत में ही कुछ शहरों से अपने-अपने घरों की ओर प्रवासियों के पलायन की घटना दुर्भाग्यपूर्ण थीं, लेकिन इसके बावजूद ये इन सबसे परहेज करने वाली पूरी आबादी की तुलना में मानव की कमजोरी से जुड़ी केवल कुछ ही छिट-पुट घटनाओं को दर्शाती हैं। पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश से लेकर दूसरे छोर पर स्थित कच्छ तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारतीय सर्वहित के लिए एकजुट हो गए हैं।
हम देशवासियों द्वारा आत्म-संयम का यह चमत्कारी परिचय देने की व्याख्या कैसे करेंगे? दरअसल, भारतीय मानस में ही इस प्रश्न का जवाब छिपा है। इसी तरह हमारी सांस्कृतिक परंपराएं भी इस सवाल के जवाब का हिस्सा हैं। इसके अलावा, कई और बातें भी हो सकती हैं। फिर भी, सभी देशवासियों को एकजुट करने वाला सबसे महत्वपूर्ण कारक (फैक्टर) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नेतृत्व रहा है। हमारा देश सौभाग्यशाली है कि हमारे यहां एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनके कई गुण इस तरह की अप्रत्याशित परिस्थितियों में एक बार फिर पूरे आपसी संयोजन के साथ कमाल दिखा रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने पूरे देश में लॉकडाउन को उस समय लागू करने का निर्णय लिया जब संक्रमित रोगियों की संख्या काफी कम थी। यह उनकी गंभीर चिंता के साथ-साथ उनके दूरदर्शी साहस को भी दर्शाता है, जिन्हें हम इससे पहले अन्य परिस्थितियों में भी देख चुके हैं। नागरिकों की जिंदगी को बचाने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन करना और अर्थव्यवस्था को ठप करना एक अत्यंत कठोर कदम है, जो कोविड-19 से निपटने के लिए विश्व भर में उठाए जा रहे विभिन्न कदमों से स्पष्ट हो जाता है। यह मोदी जी की लोकप्रियता का ही कमाल है कि इस कठोर निर्णय का विरोध नहीं किया गया, बल्कि उसका स्वागत किया गया, और लोगों ने भी बड़े उत्साह से इसे एक जन आंदोलन में बदल दिया। जैसा कि हम सभी ने लॉकडाउन की अवधि में देखा, ‘जनता कर्फ्यू’ के दौरान लोग सड़कों पर अपनी आवाजाही पर लगाई गई पाबंदियों का स्वयं ही पालन कर रहे थे। मैं भारत या विदेश में किसी भी ऐसे अन्य राजनेता की कल्पना नहीं कर सकता, जो सचमुच कुछ ही घंटों के भीतर लोगों के व्यवहार में सफलतापूर्वक आमूलचूल बदलाव लाने की क्षमता रखते हों।
मोदी जी द्वारा देशवासियों से की गई अपील का अभूतपूर्व असर भी गौर करने लायक है। दरअसल, सबसे पहले डॉक्टरों एवं अन्य कर्मियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए लोगों से थालियों को पीटने और बाद में देशवासियों की एकजुटता व सकारात्मकता के प्रतीक के रूप में दीप जलाने की उनकी अपील का आकलन इनसे हासिल वृहद परिणामों के संदर्भ में भी किया जाना चाहिए। मैं दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों की कई गाथाओं को अभिव्यक्त कर सकता हूं, जिन तक सकारात्मकता की प्रबल भावना इस तरह के अभिनव तरीकों के अलावा किसी अन्य तरीके से नहीं पहुंची होगी। प्रधानमंत्री के इन उपायों से ग्रामीणों के बीच जागरूकता उत्पन्न करने से जुड़ी सकारात्मक चर्चाएं काफी बढ़ गई हैं। जब भी मुझे छोटे शहरों एवं गांवों में रहने वाले अपने पुराने सहयोगियों और अन्य साथी नागरिकों से फोन पर बात करने का मौका मिलता है, तो मैं उनकी व्यापक जागरूकता, विभिन्न कठिनाइयों के बावजूद सावधानियां बरतने की उनकी तत्परता और उनके सकारात्मक नजरिए से चकित हो जाता हूं। वे स्वयं इस व्यापक सकारात्मक बदलाव के लिए ‘‘मोदी-जी’’ को श्रेय देते हैं। यह प्रधानमंत्री पर लोगों का अडिग भरोसा ही है जिससे लॉकडाउन की इस हद तक उल्लेखनीय कामयाबी सुनिश्चित हो पाई है।
इसका मतलब यह नहीं है कि राज्यों के मुख्यमंत्रियों, जिला मजिस्ट्रेटों/कलेक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में दिए गए योगदान को कमतर आंका जा रहा है। असल में, ऐसे कई मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने अद्भुत काम किया है। कई महापौर और नगर निगम आयुक्त लोगों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए अपनी ओर से अथक प्रयास कर रहे हैं। बिल्कुल नई तरह की इस लड़ाई में हमारे सशस्त्र बल, पुलिस और अर्धसैनिक बल भी कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के साथ-साथ जरूरतमंद लोगों को सहायता प्रदान करने के लिए स्थानीय अधिकारियों की मदद करने में पूरी तरह से डटकर उनका साथ दे रहे हैं। हालांकि, इसके बावजूद देश के शीर्ष नेतृत्व की ओर से समन्वय सुनिश्चित न हो पाने की स्थिति में इस तरह के प्रयासों से केवल स्थानीय स्तर के ही नतीजे हासिल होने की संभावना थी और ऐसे समग्र राष्ट्रव्यापी परिणाम कतई नहीं प्राप्त होते, जैसा कि हमें अभी देखने को मिल रहे हैं।
इसके अलावा, एक अत्यंत सराहनीय बात यह है कि प्रधानमंत्री ने हाशिए पर पड़े लोगों, दिहाड़ी मजदूरों, कामगारों और किसानों को प्राथमिकता दी है। विशेष पैकेज के साथ-साथ अन्य ठोस उपायों की बदौलत सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी ओर से सर्वोत्तम प्रयास कर रही है कि लॉकडाउन के आर्थिक बोझ की सर्वाधिक मार इन लोगों पर ही न पड़ जाए।
मैं यह सोचकर चकित रह जाता हूं कि प्रधानमंत्री ने इस गंभीर संकट से निपटने के लिए स्वयं को आखिरकार किस तरह से तैयार किया। मोदी जी को वास्तव में गंभीर संकट से निपटने का विशेष अनुभव है। मुझे याद है कि वर्ष 1979 में एक बांध के फट जाने के बाद गुजरात के पूरे शहर में त्राहिमाम मचने पर सबसे पहले मोरबी पहुंचने वाले लोगों में वह भी शामिल थे। तकरीबन 25-30 साल की कम उम्र में ही आपातकाल विरोधी आंदोलन में पूरी सक्रियता से भाग लेने के बाद वह उसी समय से आरएसएस के भीतर और बाहर एक स्वीकृत नेता के रूप में उभर चुके थे। मोरबी में उन्होंने राहत कार्य के लिए आरएसएस की एक टीम का नेतृत्व किया था। बाद में, चुनावी राजनीति में उनका करियर वर्ष 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होने के साथ शुरू हुआ। यह दरअसल वह समय था जब राज्य भूकंप की त्रासदी झेलने के बाद धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा था। मुझे याद है कि किस तरह से वह कच्छ का साप्ताहिक दौरा किया करते थे और निर्धारित समय से पहले ही विभिन्न कार्यों को पूरा करने और समस्त कस्बों एवं शहरों का पुनर्निर्माण करने के लिए नौकरशाही में नई ऊर्जा भरा करते थे। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने राज्य सरकार की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी।
इसमें कोई शक नहीं है कि समूचे विश्व के किसी भी देश के प्रमुख को पहले से ही इस तरह के अप्रत्याशित संकट से निपटने का कोई अनुभव नहीं है जिसका सामना पूरी दुनिया अभी कर रही है। हालांकि, अनुभव से भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण निश्चित तौर पर मोदी जी के बुनियादी मूल्य और काम के प्रति अटूट समर्पण भाव हैं, जैसे कि वह अक्सर स्वयं को ‘प्रधान सेवक’ कहते हैं, जिनकी बदौलत यह विनम्र ‘चमत्कार’ संभव हो पाया है: एकजुट भारत, जो प्रेरणादायक संयम के साथ धीरे-धीरे नोवल कोरोना वायरस को परास्त करते हुए हर दिन और भी अधिक मजबूती के साथ उभर रहा है।
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