हिंदी कथा साहित्य की भूमिका और संपादकीय के अंश :
किस्से - कहानियों, कथा - गाथाओं के प्रति मनुष्य की रुचि सहस्राब्दियों पूर्व से रही है, लेकिन उपन्यास या नॉवेल और कहानी या शार्ट स्टोरी के रूप में इनका विकास पिछली दो सदियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। हिंदी में नए रूप में कहानी एवं उपन्यास विधा का आविर्भाव बीसवीं शताब्दी में हुआ है। वैसे संस्कृत का कथा - साहित्य अखिल विश्व के कथा - साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। लोक एवं जनजातीय साहित्य में कथा – वार्ता की सुदीर्घ परम्परा रही है। इधर आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य का विकास संस्कृत - कथा - साहित्य अथवा लोक एवं जनजातीय कथाओं की समृद्ध परम्परा से न होकर, पाश्चात्य कथा साहित्य, विशेषतया अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव रूप में हुआ है। कहानी कथा - साहित्य का एक अन्यतम भेद और उपन्यास से अधिक लोकप्रिय साहित्य रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना - सुनना मानव का स्वभाव बन गया। सभी प्रकार के समुदायों में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में तो कहानियों की सुदीर्घ और समृद्ध परंपरा रही है। वेद - उपनिषदों में वर्णित यम-यमी, पुरुरवा-उर्वशी, सनत्कुमार-नारद, गंगावतरण, नहुष, ययाति, नल-दमयन्ती जैसे आख्यान नए दौर की कहानी के पुरातन रूप हैं।
आधुनिक सभ्यता में उपन्यास और कहानी ने अपनी खास जगह बना ली है। इसके मुख्य कारण हैं, व्यापक लोक चेतना का उदय, प्रजातंत्र के प्रति गहरा रुझान, जीवन के साथ साहित्य की प्रखर अंतर्क्रिया और युग - परिवेश से गहन संपृक्ति। भारतीय संदर्भ में भी उपन्यास और कहानी की विकास यात्रा इन्हीं कारकों की उपस्थिति को प्रत्यक्ष करती है।
निरंतर बदलते यथार्थ, नवीन संवेदनाओं और परिवेशगत बदलाव को हिन्दी के अनेक कथाकारों ने नित नूतन कलेवर और कथा शिल्प के माध्यम से प्रत्यक्ष किया है। गाँव – नगर और महानगर से लेकर भूमंडलीकरण और बाजारवाद तक व्यापक आयामों को समाहित करते हुए हिन्दी कथा साहित्य का पाट निरंतर चौड़ा हो रहा है। हाल के दशकों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के बीच हाशिये के समुदायों की चिंता का स्वर कथाकारों के व्यापक सरोकारों को प्रत्यक्ष कर रहा है।
इस पुस्तक में हिंदी कहानी की विकास यात्रा, विविधविध धाराओं और प्रमुख रचनाकारों की पड़ताल के साथ प्रतिनिधि कहानियों का समावेश किया गया है। इनमें जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद, जैनेंद्र कुमार, अज्ञेय, उषा प्रियंवदा, भीष्म साहनी और अमरकांत उल्लेखनीय हैं। इनके साथ ही अमृतलाल नागर, यशपाल, फणीश्वरनाथ रेणु, राजेंद्र यादव, कृष्णा सोबती, मालती जोशी एवं चित्रा मुद्गल के अवदान पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। हाल ही में प्रकाशित इस पुस्तक में इक्कीसवीं सदी के कथा साहित्य में आए नए मोड़ों की पड़ताल भी की गई है।
प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma
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