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शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय संगीत की शिक्षा का एक अनोखा संस्थान, जहां उम्र का कोई बन्धन नहीं

सफलता की कहानी


सन 1926 से उज्जैन में शास्त्रीय संगीत की धरोहर को संभाले है


8 वर्ष से लेकर 80 वर्ष तक के विद्यार्थी एकसाथ बैठकर सीखते हैं संगीत



            उज्जैन 19 मार्च। संगीत किसी तपस्या से कम नहीं, ये एक कठिन साधना है, जिसमें लगन के साथ-साथ धैर्य की भी उतनी ही जरूरत होती है, इसलिये संगीतज्ञों की तुलना साधु-सन्यासियों से की जाती है, जिसमें वे संगीत की साधना सबकुछ भूलकर करते हैं। प्राचीनकाल से ही उज्जैन शहर कला, साहित्य, विज्ञान और संगीत के प्रमुख केन्द्रों में से एक रहा है। यहां राजा भर्तृहरि और सम्राट विक्रमादित्य जैसे शासक हुए, जिनके समय में कला और संगीत का विकास अपने चरम पर था। राजा भर्तृहरि तो स्वयं भी एक कवि थे, जिन्होंने अनगिनत काव्यग्रंथों की रचना की। वहीं महाकवि कालिदास का साहित्य और संगीत के क्षेत्र में न “भूतो न भविष्यति” जैसा किये गये योगदान की पूरी दुनिया में मिसाल दी जाती है। उज्जैन के इसी इतिहास से प्रभावित होकर ही शायद पं.विष्णु भातखंडे द्वारा आज से लगभग 94 साल पहले सन 1926 में उज्जैन में संगीत का महाविद्यालय स्थापित करने की परिकल्पना की गई।


            उज्जैन का शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय देश के सबसे पुराने संगीत महाविद्यालयों में से एक है, वहीं मध्य प्रदेश का यह दूसरा सबसे पुराना और वरिष्ठ संगीत महाविद्यालय है। महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य श्री सुनील अहिरवार बताते हैं कि देश के स्वतंत्र होने के बाद यह महाविद्यालय शासन के अधीन हुआ। वर्तमान में मध्य प्रदेश शासन के संस्कृति विभाग के अन्तर्गत महाविद्यालय का संचालन और संधारण किया जाता है। उज्जैन में संगीत महाविद्यालय स्थापित करने के पीछे पं.विष्णु भातखंडे का प्रमुख उद्देश्य यह था कि संगीत की शिक्षा अन्य विषयों की तरह निर्धारित पाठ्यक्रम तैयार कर विद्यार्थियों को दी जाये। साथ ही शास्त्रीय संगीत और नृत्य की विद्या के अभिलाषी ऐसे विद्यार्थी जो परम्परागत संगीत घरानों में जाकर संगीत सीखने में असमर्थ थे, उन्हें संगीत शिक्षा का एक स्थाई मुकाम प्राप्त हो सके।


            मनुष्य का जन्म से ही संगीत से गहरा नाता जुड़ जाता है जो आजीवन बरकरार रहता है। भारतीय संस्कृति में आज भी जन्म, नामकरण और विवाह जैसे विभिन्न समारोह में मंगल गीत गाये जाते हैं। प्रात:काल में पक्षियों का कलरव नदियों से गिरने वाले झरने, बारिश की बूंदें, इन सभी में संगीत ही तो निहित है।


            अन्य शैक्षणिक संस्थानों की तरह माधव संगीत महाविद्यालय में भी शास्त्रीय नृत्य, गायन और वादन में डिप्लोमा, यूजी और पीजी कोर्स का अध्ययन-अध्यापन किया जाता है, लेकिन इस महाविद्यालय की एक खास बात यह है कि यहां संगीत सिखने के लिये उम्र का कोई बन्धन नहीं है। कई उम्रदराज भी बच्चों के साथ-साथ यहां संगीत सिखने के लिये आते हैं। कई बार तो ऐसा होता है कि एक आठ साल का बालक और एक 80 साल के बुजुर्ग बराबर में बैठकर संगीत की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जिसे देखकर हर्षमिश्रित आश्चर्य होता है। इस महाविद्यालय में संगीत पर प्रकाशित कई पुस्तकों को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। पहले परीक्षा सेमीस्टरवाइस होती थी, परन्तु अब वर्ष में एक बार विद्यार्थियों की लिखित और प्रायोगिक परीक्षा आयोजित की जाती है।


            माधव संगीत महाविद्यालय ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय से संबद्ध है। यहां संगीत में डिप्लोमा आठ वर्ष का होता है, जिसमें चार स्तर- प्रवेशिका, मध्यमा, विद और कोविद दो-दो वर्ष के होते हैं। विद स्नातक स्तर और कोविद स्नोतकोत्तर के समकक्ष होता है। डिप्लोमा के अलावा संगीत में बीपीए ग्रेजुएशन और एमपीए पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्सेस भी उपलब्ध हैं। डिप्लोमा कोर्सेस के लिये न्यूनतम आयु और शैक्षणिक योग्यता के बारे में जब जानकारी दी गई तो एक बार के लिये आश्चर्य हुआ कि तीसरी कक्षा पास विद्यार्थी भी संगीत में यहां से डिप्लोमा कर सकते हैं। इस महाविद्यालय में आज भी गुरू-शिष्य परम्परा का निर्वहन किया जाता है। यहां प्रदेश का पहला नियमित सारंगी पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है, जिसमें सैयद अहमद शाह सारंगी वादन के एकमात्र विद्यार्थी हैं।


            महाविद्यालय के श्री संजय मिश्रा बताते हैं कि सुर और लय से ही संगीत की आधारभूत शिक्षा प्राप्त होती है। इस हेतु बच्चों को प्राथमिक विद्यालय स्तर से ही संगीत की शिक्षा दी जाना चाहिये, ताकि उनका बेस मजबूत हो सके। यहां संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के लिये आने वाले इच्छुक विद्यार्थियों से पहले उनकी रूचि किस विषय में है, यह पूछा जाता है क्योंकि संगीत रचनात्मक होता है और इसे सिखने के लिये मन से इच्छा जागरूक होना बहुत जरूरी है।


            श्री मिश्रा बताते हैं कि संगीत के लिये उसके अनुरूप देश, काल, परिस्थिति और पृष्ठभूमि होना बहुत जरूरी है।


संगीत में कैरियर के हैं कई स्कोप



            श्री सुनील अहिरवार ने बताया कि लोगों में यह आम धारणा है कि उनके बच्चे केवल शौकिया तौर पर ही या अतिरिक्त गतिविधियों के तौर पर ही संगीत सीखें, क्योंकि इसमें कैरियर बनाने का कोई बेहतर विकल्प नहीं है, जबकि यह धारणा पूरी तरह से गलत है। शासकीय संगीत महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के बाद अन्य जानी-मानी शैक्षणिक संस्थाओं में संगीत अध्यापन के द्वार तो खुल ही जाते हैं, इसके अलावा यहां से शिक्षा प्राप्त कर विद्यार्थी एक कलाकार के रूप में अपने आपको स्थापित कर सकते हैं, जिनके लिये विश्वभर के मंच अपनी कला का जौहर दिखाने के लिये उपलब्ध होते हैं।


            आज ऐसे कई विश्वविख्यात कलाकार हैं, जिन्होंने माधव संगीत महाविद्यालय में अध्ययन-अध्यापन कर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला का लोहा मनवाया है। इनमें हाल ही में उज्जैन से पद्मश्री पुरस्कार के लिये चुने गये सुप्रसिद्ध कथक नर्तक डॉ.पुरूषोत्तम दाधीची, गुन्देचा बंधु और नागदा के शर्मा बन्धु प्रमुख हैं। इसके अलावा महाविद्यालय से साउण्ड मिक्सिंग और इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण कर स्वयं का रिकॉर्डिंग स्टुडियो भी प्रारम्भ किया जा सकता है।


            इस महाविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा उज्जैन में समय-समय पर आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे यूथ फेस्टिवल, अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस, पं.भातखंडे स्मृति समारोह, गुरू पूर्णिमा, अ.भा.कालिदास समारोह और भारत पर्व में आकर्षक और मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुतियां दी जाती है। हाल ही में वृहद स्तर पर आयोजित किये गये दिव्यांग विवाह सम्मेलन में भी महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा प्रस्तुति दी गई। उज्जैन के अलावा प्रदेश के दूसरे शहर और अन्य प्रदेशों में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी यहां के विद्यार्थी शिरकत करते रहते हैं।


            माधव संगीत महाविद्यालय में एससी, एसटी के छात्र-छात्राओं और महिलाओं के लिये संगीत सिखाने पर शैक्षणिक शुल्क नहीं लगता है। यदि कोई संगीत में पीएचडी करना चाहता है तो भी महाविद्यालय से उसे उचित मार्गदर्शन मिल सकता है।


यहीं संगीत की शिक्षा ली, अब यहीं पढ़ाने का सौभाग्य मिला -डॉ.विनीता माहुरकर



            महाविद्यालय में सितार वादन की प्राध्यापक डॉ.विनीता माहुरकर ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उनका पूरा बचपन इसी महाविद्यालय में संगीत की शिक्षा ग्रहण करते हुए बिता है। बचपन की कई खट्टी-मीठी यादों का स्मरण कर डॉ.माहुरकर के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट तैर जाती है। ये सन 1988 की बात है जब वे आठवी कक्षा में थीं। उन्होंने इसी महाविद्यालय से अपने गुरू ईश्वरचन्द शर्मा के सान्निध्य में सितार वादन सीखा। संयोग से वे आज इसी महाविद्यालय में नये विद्यार्थियों को सितार वादन सिखती हैं। यह उनके लिये अत्यन्त गौरव का विषय है। डॉ.माहुरकर बताती हैं कि संगीत सिखने के लिये टेलेंट के साथ-साथ धैर्य की बहुत आवश्यकता है। आजकल के माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे मल्टीटेलेंटेड हों, लेकिन शास्त्रीय संगीत में पारंगत होने में समय लगता है।


            इसके लिये गुरू का उचित मार्गदर्शन बेहद जरूरी है। गुरू-शिष्य परम्परा में सबसे अद्भुत बात यह है कि इसमें गुरू और शिष्य के बीच अपनत्व वाला भाव प्रमुख होता है।


ख्यातिप्राप्त प्राध्यापकों द्वारा सिखाई जाती है संगीत की बारिकियां


            माधव संगीत महाविद्यालय में बतौर गेस्ट फैकल्टी कथक नृत्य की प्राध्यापक सुश्री स्वाति तेलंग ने कथक में पीएचडी की है। उनके द्वारा शहर में शास्त्रीय नृत्य को बढ़ावा देने के लिये कनकश्रृंगा नृत्य अकादमी का भी संचालन किया जाता है। सुश्री तेलंग ने अपनी गुरू पूनम व्यास और पल्लवी किशन के सान्निध्य में कथक नृत्य सीखा तथा श्रीमती सुचित्रा हलमनकर व श्री राजेन्द्र आर्य के मार्गदर्शन में इसमें पीएचडी की है। वे पिछले आठ वर्षों से माधव संगीत महाविद्यालय से जुड़ी हैं। उनकी शिष्याओं कृतिका व्यास, प्रियंका करते और उर्वशि खत्री द्वारा समय-समय पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कथक नृत्य प्रस्तुत कर उज्जैन शहर का गौरव बढ़ाया है। एक अन्य शिष्या जिज्ञासा उपाध्याय राज्य स्तर पर आयोजित कार्यक्रमों में प्रस्तुति दे चुकी हैं। इसके अलावा अखिल भारतीय कालिदास समारोह, विक्रमोत्सव और भारत पर्व में भी उनके निर्देशन में कथक नृत्य की प्रस्तुतियां दी गई हैं।


            सुश्री तेलंग बताती हैं कि कथक नृत्य में पारंगत होने के लिये कम से कम चार वर्ष लगते हैं।


            महाविद्यालय की अन्य सहायक व्याख्याता सुश्री माधवी बर्वे भी यहां पूर्व में विद्यार्थी रह चुकी हैं।


पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजी संगीत की विरासत


            महाविद्यालय के श्री अब्दुल हमीद लतीफ का पीढ़ी दर पीढ़ी वायलीन और सारंगी वादन से गहरा नाता रहा है। ये कहें तो ज्यादा मुनासिब होगा कि विलुप्त होने की कगार पर पहुंची सारंगी वादन कला को संजोकर रखने का बीड़ा श्री अब्दुल हमीद लतीफ ने ही उठा रखा है। अब नई पीढ़ी के उनके पुत्र सैयद इरशाद भी इसी दिशा में पीढ़ियों की परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। इनके अलावा डॉ.तृप्ति नागर, श्री विजय गोथरवाल, डॉ.प्रद्युम्न उद्धव और श्री अजय शर्मा जैसे अनुभवी प्राध्यापकों की एक पूरी टीम जुटी है शासकीय संगीत माधव महाविद्यालय में जो शास्त्रीय संगीत के प्रति लालायित नई पीढ़ी को तैयार कर रही है।



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