प्रदेश वासियों, हम सब मिलकर प्रदेश की साख और उसकी पहचान को नये आयाम देने की दिशा में अग्रसर हैं। प्रदेश की साख से मेरा आशय है सुदृढ़ सुशासन से समूचे विश्व के निवेश को मध्यप्रदेश की ओर आकर्षित करना तथा पहचान स्थापित करने से मेरा आशय है कि मध्यप्रदेश को नकारात्मक सन्दर्भों से नहीं, उसके नवाचारों से पहचाना जाना।
साथियो, आप लोगों ने जब मुझे प्रदेश का मुखिया होने का दायित्व दिया तब मैंने पाया था कि केन्द्र सरकार और पूर्ववर्ती प्रदेश भाजपा सरकार के अविवेकपूर्ण आर्थिक निर्णयों की वजह से प्रदेश गम्भीर आर्थिक कठिनाइयों में फँस गया है। प्रदेश में सिर्फ व्यक्ति केन्द्रित राजनीति कर प्रसिद्धि का झूठा प्रचार किया गया है। जितना प्रचार पर संसाधन झोंके गये, उतना ही मध्यप्रदेश का समावेशी विकास गर्त में गिरता गया। कई योजनाएँ बगैर पर्याप्तबजटीय प्रावधान के प्रारम्भ की गईं, जिसका बहुत बड़ा भार भी हमारी सरकार पर पड़ा। हमने सरकार में आते ही यह तय किया कि हम मितव्ययिता के साथ जनता की अपेक्षाओं को मध्यप्रदेश के केन्द्र में रखकर प्रदेश की साख पूरे विश्व में स्थापित करेंगे। जिसके परिणाम भी हमें अब धीरे-धीरे देखने को मिल रहे हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी ने कहा था कि सरकार जब भी कोई अपनी योजना बनाए तो उसके सम्मुख समाज की अन्तिम पंक्ति में खड़े आदमी का चेहरा होना चाहिए तथा सरकार को अपने कामकाज का मूल्यांकन करना हो तो उसे गाँवों और किसानों की दशा देखनी चाहिए। मुझे प्रसन्नता है कि हमारी सरकार की योजनाओं का केन्द्र बिन्दु समाज की अन्तिम पंक्ति में खड़ा हुआ व्यक्ति है। आज प्रदेश के 87 प्रतिशत से अधिक घरेलू बिजली के उपभोक्ताओं का बिजली का बिल ‘इन्दिरा गृह ज्योति योजना’ के तहत मात्र 30 से 40 प्रतिशत रह गया है। साथ ही ‘जय किसान फसल ऋण माफी योजना’ से किसानों के चेहरे की चमक और खेतों की खुशियाँ लौटी हैं। ऐसी कई योजनाओं से हम गाँधीजी के स्वप्न को साकार कर रहे हैं।
प्रदेश वासियो, आज मैं आपसे एक विशेष उद्देश्य को लेकर संवाद स्थापित कर रहा हूँ। बीते दिनों केन्द्र की सरकार ने देश का बजट जारी किया है जिसे देखने के बाद इस बात का साफ आभास हो रहा है कि केन्द्रीय सरकार के अपरिपक्व आर्थिक निर्णयों ने समूचे देश को बेहद गंभीर आर्थिक संकट में डाल दिया है, जिसका खामियाजा प्रदेश को भी भुगतना पड़ रहा है।
केन्द्रीय वित्त मंत्रियों के बड़े होते बजट भाषण और
देश की घटती जीडीपी वृद्धि दर
वर्ष दर वर्ष केन्द्रीय वित्त मंत्री का जैसे-जैसे बजट भाषण बड़ा होता जा रहा है, वैसे-वैसे देश की जीडीपी वृद्धि दर गिरती जा रही है। ऐसा 23 वर्षों बाद हुआ है कि लगातार 6 त्रैमास से देश की जीडीपी वृद्धि दर गिर रही है। वित्तीय वर्ष 2018-19 के प्रथम त्रैमास में वास्तविक जी.डी.पी. वृद्धि दर 7.95 प्रतिशत थी, जो लगातार गिरते हुए 2018-19 के द्वितीय त्रैमासमें 7 प्रतिशत, तृतीय त्रैमास में 6.58 प्रतिशत, चैथे में 5.83 प्रतिशत, 2019-20 के प्रथम त्रैमास में 5.01 प्रतिशत और अब 2019-20 के द्वितीय त्रैमास में 4.5 प्रतिशतरह गई ।वर्ष 2018-19 की जीडीपी वृद्धि दर पूर्व में 6.8 प्रतिशत अनुुमानित थी, जिसका अनुमान घटाकर अब 6.1 प्रतिशत कर दिया गया है। 2019-20 में तो देश की वृद्धि दर मात्र 5 प्रतिशत अनुमानित है जो कि केंद्र सरकार की नीतियों का देश की अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव परिलक्षित करती है।
केन्द्रीय भाजपा सरकार का समावेशी विकास पर आघात
इतना ही नहीं, देश के समावेशी विकास की कई योजनाओं में कटौती करके केन्द्र सरकार ने समाज के वंचित वर्ग तथा किसानों की प्रगति को आघात पहुँचाया है। मनरेगा में वर्ष 2019-20 के पुनरीक्षित अनुमान की तुलना में रुपये 9502 करोड़ की कटौती की गई। इसी प्रकार हरित क्रान्ति योजना में रुपये 2596 करोड़ पुनरीक्षित अनुमान में कम किये गये हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना मेंरुपये 4930 करोड़ पुनरीक्षित अनुमान में कम किये गये हैं। आयुष्मान भारत में तो बजट प्रावधानको घटाकर लगभग आधा कर दिया गया है। किसान सम्मान निधि में भी रूपये 75000 करोड़ का प्रावधान बजट में रखा गया था, किंतु पुनरीक्षित अनुमान में इसे घटाकर रुपये 54370 करोड़ किया गया है। इसी प्रकार इन्टीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेन्ट स्कीम में रूपये 2629 करोड़ तथा मिड-डे मील योजना में रूपये 1088 करोड़ बजट प्रावधान की अपेक्षा पुनरीक्षित अनुमान में कम खर्च किया जायेगा। फूड सब्सिडी में भी बजट प्रावधान रुपये 1,84,220 करोड़का किया गया था, मगर सिर्फ रुपये 1,08,688 करोड़ खर्च करने कालक्ष्य पुनरीक्षित अनुमान में दर्शाया गया है। अर्थात् देश के किसानों और अन्तिम पंक्ति में खड़े लोगों का विकास बुरी तरह प्रभावित होगा।
आज देश के युवा सबसे ज्यादा निराश हैं क्योंकि वे 45 वर्षों की भीषणतम बेरोजगारी का दंशझेल रहे हैं। केन्द्र सरकार ने बजट में बताया है कि इस वर्ष राजस्व घाटा जीडीपी का 2.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो अगले वर्ष बढ़कर 2.7 प्रतिशत होना अनुमानित है। वर्ष 2019-20 हेतु राजकोषीय घाटे का अनुमान 3.8 प्रतिशत तथा वर्ष 2020-21 हेतु यह 3.5 प्रतिशत अनुमानित किया गया है। यदि इन वर्षाें हेतु इस अनुमान में से राजस्व घाटे को हटा दिया जाये तो वर्ष 2019-20 तथा 2020-21 हेतु क्रमशः 1.4 प्रतिशत तथा 0.8 प्रतिशत राशि ही पूंजीगत व्यय हेतु बचती है। अर्थात यदि प्रतिशत में देखा जाये तो अगले वर्ष केंद्र सरकार अधोसंरचना विकास पर इस वर्ष से भी कम राशि व्यय करेगी। ऐसे में न सिर्फ बेरोजगारी बढ़ेगी बल्कि जीडीपी वृद्धि दर भी प्रभावित होगी। केपिटल एक्सपेंडीचर इस वर्ष जीडीपी का 1.4 प्रतिशत है जो अगले वर्ष घटकर 0.8 प्रतिशत मात्र रहने वाला है। भारत के लिए गंभीर चिन्ता का विषय यह है कि विश्वभर के लोग इन सूचकांकों को देख रहे हैं, जिससे भारत के भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
इससे भी अधिक चिन्ता का विषय यह है कि केन्द्र सरकार ने बताया था किशुद्ध कर राजस्व संग्रहण (Net Tax Revenue Collection) इस वर्ष 16 लाख 49 हजार करोड़ रुपये होगा मगर दिसम्बर माह तक यह मात्र रुपये 9 लाख करोड़ हुआ है। साथ ही यह भी बताया था कि इस वर्ष कुल खर्च (Total Expenditure) रूपये 27 लाख 86 हजारकरोड़ रुपये होगा मगर दिसम्बर माह तक लगभग 21 लाख करोड़ रुपये का व्यय हुआ है। अर्थात माह दिसंबर 2019 तक राजकोषीय घाटा पूरे वर्ष के अनुमान का 132 प्रतिशत हो चुका है। उपरोक्त सभी सूचकांक देश के गम्भीर आर्थिक हालात की ओर संकेत करते हैं।
प्रदेश के विकास के साथ केन्द्र का विश्वासघात
मेरी चिन्ता देश के साथ-साथ मध्यप्रदेश के सन्दर्भित विषयों पर भी है। मध्यप्रदेशकी भी कई बड़ी योजनाओं में केन्द्र सरकार द्वारा उनके हिस्से की राशिअद्यतन आंकड़ों अनुसार बहुत कम प्रदान की गई है जिससे प्रदेश के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। जैसे-स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) में अब तक 20.7 प्रतिशत ही राशि केन्द्रीय हिस्से की प्रदान की गई है, हाउसिंग फाॅर आॅल में 8.5 प्रतिशत, विशेष पिछड़ी जन-जातियों के विकास में 58 प्रतिशत, इन्दिरागाँधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन 44.87 प्रतिशत, निःशक्तजनों के लिए बाधा रहित वातावरण 19 प्रतिशत, राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान 42 प्रतिशत, किशोरी बालिका योजना 28 प्रतिशत, समेकित बाल संरक्षण योजना 53 प्रतिशत, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना 49 प्रतिशत, प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) 57 प्रतिशत, अर्थात् कुल मिलाकर 31 जनवरी 2019 तक केन्द्र सरकार ने प्रदेश के विभिन्न विकास की योजनाओं में केन्द्र से प्राप्तियोग्य धनराशि में से रुपये 5061 करोड़ कम दिये हैं।
पचास वर्षाें में सबसे कम केन्द्रीय करों में हिस्सेदारी राज्यों को
इतना ही नहीं,केन्द्र की भाजपा सरकार ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के वोट आॅन अकाउन्ट में केन्द्रीय करों में मध्यप्रदेश की हिस्सेदारी 63750 करोड़ रुपये निर्धारित की थी, जिसे मुख्य बजट 2019-20 में घटाकर रूपये 61073 करोड़ कर दिया गया। जिसे पुनः पुनरीक्षित अनुमान 2019-20 में रुपये 53960 करोड़ कर दिया गया और अन्ततः पूर्व वर्ष की राशियों को समायोजित करते हुए वित्तीय वर्ष 2019-20 हेतु राज्य की केन्द्रीय करों में हिस्सेदारी को रुपये 49517 करोड़ किया गया है। अर्थात् केन्द्रीय करों के हिस्से में से मध्यप्रदेश के रुपये 14233 करोड़ कम किये गये। केन्द्रीय करों के हिस्से में से भी मध्यप्रदेश के साथ बड़ा कुठाराघात किया गया है। बीते 50 वर्षों में यह पहली बार हुआ है कि केन्द्रीय करों में से राज्यों की हिस्सेदारी को इतना कम किया गया है।
अन्ततः, मैं प्रतिबद्ध हूँ कि हर ऐसी सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ, जो मध्यप्रदेश के सम्मुख आएंगी, उन्हें अवसरों में तब्दील कर दूँगा। मध्यप्रदेश को देश के अग्रणी राज्यों की श्रेणी में खड़े होने से कोई नहीं रोक सकता। साथ ही मैं इस बात की पीड़ा भी प्रकट करना चाहता हूँ कि प्रदेश की जनता ने भारतीय जनता पार्टी के 28 सांसदों को चुनकर भेजा है तथा कई वरिष्ठ भाजपा नेता प्रदेश में हैं, मगर कोई भी केन्द्र सरकार के इस अन्याय के खिलाफ मुखरता से आवाज नहीं उठाता।
आपका
(कमलनाथ)
मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश
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