कई खतरनाक बीमारियाँ फ़ैल सकती है यदि जीव चिकित्सा अपशिष्ट का सही प्रबंधन नहीं किया जाए। जीव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के प्रावधानों को कड़ाई से लागू किया जाए, पालन नहीं करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही की जावे – सज्जन सिंह वर्मा
इंदौर : दिनांक 20 फ़रवरी, 2020
मध्यपदेश शासन के पर्यावरण मंत्री श्री सज्जन सिंह वर्मा द्वारा जीव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के पालन के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण समीक्षा बैठक ली गई। बैठक के दौरान माननीय मंत्रीजी द्वारा जीव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के उपरोक्त प्रावधानों को कड़ाई से लागू करने के निर्देश दिए गए। माननीय मंत्रीजी द्वारा यह भी निर्देश दिए गए कि अस्पताल संचालकों में जागृति लाने हेतु कार्यशालाएँ आयोजित की जायें व प्रचार-प्रसार के माध्यम से सभी अस्पतालों को नियमों के प्रावधानों से अवगत कराया जावे । माननीय मंत्री जी द्वारा चिंता व्यक्त की गई कि अस्पताल का कचरा खुले स्थानों में फेंका जाता है चिंता व्यक्त की गई कि अस्पताल का कचरा खुले स्थानों में फेंका जाता है जिससे गंभीर बीमारियाँ तथा संक्रमण फैलने की आशंका रहती है, हाल ही में चीन में कैरोना वायरस जैसी अन्य कोई भी गंभीर बीमारी इससे फ़ैल सकती है।
इस संबंध में सभी अस्पताल संचालक नियमों का पालन गंभीरता से करें ताकि अपने अस्पताल, शहर व पर्यावरण को साफ़-सुथरा एवं सुरक्षित रखा जा सके। माननीय मंत्री जी द्वारा यह भी निर्देश दिए गए कि बोर्ड के अधिकारी समय-समय पर चिकित्सीय संस्थानों का निरीक्षण करें व अस्पताल संचालकों को नियमों के पालन हेतु प्रथमतः समझाईश दें तथा यदि इसके बावजूद भी अस्पतालों/नर्सिंग होम द्वारा अपशिष्टों के पृथक्करण, उपचार एवं निपटान की उपयुक्त व्यवस्था नहीं की जाती है तो ऐसे संस्थानों के विरुद्ध पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 की धारा 15 के अंतर्गत न्यायालयीन कार्यवाही की जावे अथवा अस्पतालों को बंद कराने जैसी कड़ी कार्यवाही भी की जावे ।
प्रदेश में स्थापित शासकीय/अशासकीय अस्पताल, नर्सिंग होम्स, क्लीनिक्स, डिस्पेशरीस, पशु चिकित्सालय, पैथोलोजिकल लैब, ब्लड बैंक, आयुर्वेदिक अस्पताल, वेक्सीनेशन कैंप इत्यादि ऐसे सभी संस्थान, जिनसे जीव चिकित्सा अपशिष्ट उत्पन्न होता है। इंदौर संभाग के अंतर्गत कुल 360 शासकीय अस्पताल, 1068 प्राइवेट अस्पताल/क्लीनिक/पैथोलोजी तथा 208 पशु अस्पताल संचालित हो रहे हैं। इन सभी संस्थानों से उत्पन्न होने वाले जीव चिकित्सा अपशिष्ट की मात्रा लगभग 6000 कि.ग्रा./ दिन होती है।
समीक्षा बैठक में म.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, इंदौर के क्षेत्रीय अधिकारी श्री आर. के. गुप्ता, सहित समस्त सम्बंधित अधिकारी उपस्थित हुए।
अस्पतालों से उत्पन्न कचरे के प्रबंधन के संबंध में लागू है निम्नलिखित नियम:-
- सभी चिकित्सीय संस्थानों में उत्पन्न अपशिष्टों को अस्पताल स्तर पर सेग्रीगेट (पृथकीकरण) किया जाना आवश्यक है तथा इस हेतु अपशिष्टों को 04 प्रकार की श्रेणियों में पृथक-पृथक रखने हेतु कलर कोडेड (पीली, लाल, सफ़ेद, नीली) बकेट/ पात्र का उपयोग आवश्यक है।
- अस्पतालों में उत्पन्न अपशिष्ट जैसे – शरीर के विकृत अंग, मानव अपशिष्ट एवं डिस्कार्डेड दवाइयों को पीले पात्र में, निडल, ब्लेड, संक्रमित धारदार उपकरण सफ़ेद पात्र में, संक्रमित सिरिंज, दस्ताने, ट्युबिंग , आई.बी. सेट, कैथेटर, यूरीन बैग इत्यादि लाल पात्र में तथा कांच की बोतलें, मेटलिक इम्पलान्ट्स को नीले पात्र में रखना अनिवार्य है ।
- किसी भी प्रकार के जीव चिकित्सीय अपशिष्ट को म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट के साथ मिक्स नहीं किया जाए।
- अस्पतालों में उपयोग किये जाने वाली सिरिंज की सुई को खण्डित (म्युटिलेट) करें तथा सिरिंज के प्लास्टिक के हब (मुहाने) को काटकर सिरिंज एवं सुई को 1 प्रतिशत हाईपो सोल्युशन से विसंक्रमित करें।
- जीव चिकित्सा अपशिष्टों का निपटान समीपस्थ संयुक्त जीव चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा (CBWTF) के माध्यम से किया जाना अनिवार्य है।
- सभी सरकारी/ निजी चिकित्सीय संस्थान नियमानुसार बोर्ड से प्राधिकार प्राप्त करना अनिवार्य है।
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