प्रकृति मां का ही स्वरूप होती है, अतः मां के समान मान कर इसका संरक्षण करने में हर संभव योगदान दें – कुलगुरु अखिलेश कुमार पाण्डेय, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन
विश्व पर्यावरण दिवस, 5 जून पर विशेष
उज्जैन। सम्पूर्ण विश्व आज पर्यावरण संकट से जूझ रहा है। पूरी दुनिया में पर्यावरण के प्रति चेतना जाग्रत करने के लिए पर्यावरण दिवस (World Environment Day 2024) हर साल 5 जून को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 5 जून 1972 से इस दिवस को मनाने की शुरुआत की थी। तब से 5 जून को पूरी दुनिया में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के बारे में लोगों को सचेत करना है। इस दिन लोगों को जागरूक करने के लिए पर्यावरण से संबंधित कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष पर्यावरण दिवस थीम का फोकस 'हमारी भूमि' नारे के अंतर्गत भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे पर अंकुश लगाने पर केंद्रित है। पूरे देश में पर्यावरण के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। उज्जैन शहर एवं शहर में स्थित विक्रम विश्वविद्यालय ने भी पर्यावरण के संरक्षण हेतु कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स का समावेश है और ये विशेष रूप से पर्यावरण संरक्षण हेतु सामाजिक दायित्वों का बोध कराते हैं, इसके अनुरूप विश्वविद्यालय के प्रांगण में सुबह शाम सैर करने वाले गणमान्य व्यक्तियों पर ‘ऑक्सीजन टैक्स’ लगाया गया है, जिसे सभी ने स्वीकार भी किया है। इसके अंतर्गत आम नागरिकों के सहयोग से लता वाटिका, भारतीय चिकित्सा संगठन - स्व. डॉ. जोधसिंह सलूजा स्मृति वाटिका, कृष्णानंद वाटिका, सघन वन, मातृ पितृ स्मृति खालसा वाटिका, आरोग्य वाटिका, सु-राज वाटिका, पारिजात वाटिका, आई.एम.ए. वन आदि का निर्माण किया गया है।
इसी दिशा में विद्यार्थियों की सहभागिता बढ़ाने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश शासन की योजना ‘अंकुर अभियान’ का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया गया है। विक्रम विश्वविद्यालय ने सर्वप्रथम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली के निर्देशानुसार ‘ग्रीन ग्रेजुएट’ की शुरुआत की है एवं वनस्पतियों के बारे में जानने हेतु बार कोडिंग की गई। जल की समस्या आज विकराल रूप ले रही है और भूमिगत जल लगातार समाप्त होता जा रहा है जलस्तर को सुधारने हेतु वृक्षारोपण के साथ-साथ दो तालाब ‘कुसुम ताल’ एवं ‘मंदाकिनी ताल’ का निर्माण 3.50 लाख रुपए की लागत से रेवाखण्ड फाउंडेशन के श्री मिलिंद पंडित एवं डॉ स्वाति संवत्सर पंडित द्वारा किया गया है। विभिन्न स्थानों पर खेत पर मेड और मेड़ पर पेड़ के मॉडल का क्रियान्वयन कर जल संरक्षण हेतु प्रयास किया गया है।
विश्वविद्यालय में मध्य प्रदेश सरकार के वन विभाग के सहयोग से एक महाकाल सांस्कृतिक वन स्थापित किया जा रहा है, जिसमें मुख्य रूप से लुप्तप्राय और दुर्लभ पौधों की प्रजातियाँ का संरक्षण एवं संवर्धन होगा। पौधों के माध्यम से पारंपरिक विरासत और संस्कृति को दर्शाने हेतु इस वन में विभिन्न छोटे वनों का निर्माण किया गया है जिसमे मुख्यतः सांदीपनि, चरक, भारत माता, रामपथ गमन, कालिदास वन आदि शामिल हैं। विश्वविद्यालय यूजीसी के ग्रीन ग्रेजुएट प्रोग्राम को लागू करने वाला प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय बना है। इसके साथ ही छात्रों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए विश्वविद्यालय मे कई पर्यावरण संबंधी दिवस मनाए जाते हैं। विश्वविद्यालय में गत 4 वर्षों में शासकीय और गैर-शासकीय संस्थानों की मदद से पौधारोपण हुआ है, जिससे विश्वविद्यालय परिसर और हरा-भरा और समृद्ध हुआ है। मैं सभी विद्यार्थियों से यह कहना चाहता हूं कि प्रकृति मां का ही स्वरूप होती है, अतः इसे मां के समान मान कर इसका संरक्षण करने में हर संभव योगदान दें।
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