उज्जैन। मेहँदी के औषधीय गुणों के दृष्टिगत दिनांक 9 एवं 10 अगस्त 2022 को निःशुल्क मेहँदी लगाए जाने का आयोजन विजय फाउंडेशन फॉर एजुकेशन, रिसर्च एंड डेवलपमेंट द्वारा भसीन काम्प्लेक्स, क्षिप्रा टूरिस्ट रेजीडेंसी के सामने माधव क्लब रोड पर प्रातः काल 11 बजे से सांयकाल 8 बजे तक किया जा रहा है।
भारत की संस्कृति बहुआयामी एवं प्राचीन है। भारतीय संस्कृति विश्व के इतिहास में कई दृष्टियों से विशेष महत्त्व रखती है तथा संसार की प्राचीनतम संस्कृतिओ में से एक है। भारत में मेहँदी का आगाज़ 12 वी शताब्दी में मुग़ल काल के आगमन के साथ हुआ। मुग़ल रानियाँ मेहँदी से आपने हाथों को सजाने पसंद करती थीं और साथ ही वो इसके औषधीय गुणों एवं ठंडी तासीर से भी परिचित थीं। धीरे-धीरे मेहँदी का प्रचलन पूरे देश में हो गया। वर्त्तमान समय में मेहँदी भारतीय शादियों में महत्चपूर्ण रस्मों में से एक है। हिन्दू संस्कृति में मेहँदी या हीना को खुशहाली, सौंदर्य और धार्मिक अनुष्ठान आदि का प्रतीक मन गया है। मेहँदी एक परिशिस्ट औषधी होती है। इसका उपयोग विविध उद्देश्यों जैसे कि प्रसाधन सामग्री, दवाइयों आदि के उत्पादन के लिए किया जाता है। मेहँदी के पौधो के सभी भागों पत्तियों, फूलो, जड़, तना, बीजो आदि में औषधीय गन पाए जाते हैं। मेहँदी में लासन नामक रंग का यौगिक पाया जाता है, जिसमे लाल संतरिया रंजक निहित होता है। यह इसके पौधो की पत्तियों का मुख़्य घटक होता है। मेहँदी में उपस्थित एंटीबैक्टीरियल और एन्टीइन्फ्लमेटरी तत्वों के कारण इसका प्रयोग प्रसाधन सामग्री तथा अन्य उत्पादों के निर्माण में किया जाता है। मेहँदी का प्रयोग सामान्यतः त्वचा से सम्बंधित कई समस्याओं जैसे खुजली, एलर्जी, पितिका, घावों आदि के उपचार के लिए किया जाता है।
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कार्यक्रम के आयोजक सचिव डॉ शिवि भसीन और डॉ पूर्णिमा त्रिपाठी ने बताया कि मेहँदी में अनेक औषधीय गुण होते हैं। इसको सांस्कृतिक पर्वों एवं शुभ कार्यों में लगाया जाना शुभफलदायक होता है। अतः मेहँदी की इन उपयोगिताओं को ध्यान में रखते हुए यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है, जिसका लाभ अधिक-से अधिक महिलाएं प्राप्त कर सकती हैं।
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