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जनजातीय भाषाओं के विकास और समन्वय में देवनागरी लिपि की भूमिका महत्त्वपूर्ण है - प्रो. शर्मा ; देवनागरी लिपि : जनजातीय भाषाएं और सूचना प्रौद्योगिकी पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

जनजातीय भाषाओं के विकास और समन्वय में देवनागरी लिपि की भूमिका महत्त्वपूर्ण है -  प्रो. शर्मा

देवनागरी लिपि  : जनजातीय भाषाएं और सूचना प्रौद्योगिकी पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न


देश की प्रतिष्ठित संस्था नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली द्वारा भोज शोध संस्थान, धार के सहयोग से राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी देवनागरी लिपि : जनजातीय भाषाएं और सूचना प्रौद्योगिकी पर केंद्रित थी। कार्यक्रम का शुभारंभ विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा, मुख्य अतिथि डॉ ज्योति सिंह, प्राध्यापिका, इंदौर, विशेष अतिथि डॉ प्रभु चौधरी, श्री सुंदरलाल जोशी, नागदा, श्रीमती सीमा मिश्र असीम, धार और कार्यक्रम अध्यक्ष श्री जयंत जोशी ने सरस्वती पूजन करते हुए किया। 


अपने उद्बोधन में मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकायाध्यक्ष प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि सदियों से देवनागरी और अन्य लिपियाँ भाषा की वाचिक क्षणिकता को लिखित शाश्वतता में बदलने में विशिष्ट भूमिका निभा रही हैं।  सैंधव, ब्राह्मी और देवनागरी लिपि विश्व सभ्यता को भारत की अनुपम देन हैं। विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों को जोड़ने में देवनागरी लिपि की अविस्मरणीय भूमिका है। भारत में प्रचलित चार प्रवर्गों में विभक्त जनजातीय भाषाओं के संवर्धन, उनके बीच आपसी संवाद और समन्वय में देवनागरी लिपि महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। आज आवश्यकता है कि हम भीली, गोंडी, भिलाली, बारेली, बैगा, कोरकू, संथाली जैसी जनजातीय भाषाओं को नागरी लिपि में लिपिबद्ध कर आगे बढ़ाएं और सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से उन्हें जन-जन तक पहुँचाएँ। अगर हम गुलाम नहीं होते तो सहज ग्राह्य शब्द आज भी उसी रूप में होते। रोमन लिपि के कारण देश की विभिन्न भाषाओं के अनेक शब्दों में बदलाव आ गया है। लिपि और भाषाएं एक दूसरे की पूरक हैं। लिपियां खत्म हुई तो भाषाओं और बोलियों के अस्तित्व पर संकट आ सकता है। देवनागरी लिपि ने देश – दुनिया की अनेक  भाषाओं को समृद्ध किया है। 

मुख्य अतिथि डॉ ज्योति सिंह, इंदौर ने कहा कि विश्व नागरिक बनने के लिए हमें अपनी भाषाओं और देवनागरी को लेकर आगे बढ़ना होगा। वाचिक परंपरा को स्थाई रूप देने के लिए लिपि अद्वितीय साधन है। भिलाली भाषा को देवनागरी के माध्यम से लिपिबद्ध करने के प्रयास अनेक दशकों से जारी हैं। वैश्वीकरण आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित करता है, वहीं दूसरी ओर तेजी से बढ़ता बाजारीकरण नुकसान पहुंचा रहा है। 


संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए शिक्षाविद श्री जयंत जोशी ने कहा कि देवनागरी वर्णमाला अत्यंत वैज्ञानिक है। देवनागरी लिपि के मानकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य हुआ है। पाठ्य पुस्तकों में देवनागरी के मानक रूप और शुद्ध वर्तनी के लिए व्यापक सजगता की आवश्यकता है।


विशेष अतिथि नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के  प्रदेश संयोजक डॉ प्रभु चौधरी ने नागरी लिपि परिषद के उद्देश्यों और गतिविधियों का परिचय देते हुए कहा कि वर्तमान में देवनागरी लिपि के प्रति संचेतना जाग्रत करने की आवश्यकता है। हिंदी के साथ देवनागरी लिपि के प्रसार के लिए निरंतर प्रयास होने चाहिए।


प्रास्ताविक वक्तव्य में भोज शोध संस्थान, धार के निदेशक डॉ दीपेंद्र शर्मा ने कहा कि धार नगरी प्राचीन युग से कला मनीषियों की नगरी रही है। भाषा को स्थिरता देने के लिए लिपि की आवश्यकता होती है। देवनागरी लिपि की दीर्घकालीन उपादेयता रही है। 


विशिष्ट अतिथि श्रीमती सीमा मिश्र असीम, धार ने कहा कि देवनागरी लिपि में लेखन करते हुए भ्रम और त्रुटि होने की संभावना बहुत कम होती है। प्राथमिक शिक्षा के स्तर से ही देवनागरी लिपि को लेकर सजगता लानी होगी। 


कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा नागरी लिपि परिषद के संयुक्त सचिव, समालोचक एवं लिपि विशेषज्ञ प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा को सम्मान पत्र अर्पित करते हुए उनका सारस्वत सम्मान किया गया।


सरस्वती वंदना कैलाश बंसल ने प्रस्तुत की। स्वागत गीत वरिष्ठ कवि श्री सुंदर लाल जोशी सूरज नागदा ने प्रस्तुत किया।

स्वागत भाषण डॉ दीपेंद्र शर्मा ने और आभार राम शर्मा परिंदा, मनावर ने जताया। संचालन श्रीमती अर्पणा जोशी, इंदौर ने किया। 

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी में शामिल संस्कृतिकर्मियों और साहित्यकारों को प्रतिभागिता प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। 

कार्यक्रम में डॉ श्रीकांत द्विवेदी, नंदकिशोर उपाध्याय, कृष्ण कुमार दुबे, दुर्गेश नागर दंश, मुकेश मेहता, हरिहरदत्त शुक्ल, ईश्वर दुबे नकोई, शशिभूषण वैष्णव, सूर्यकांत बोरदिया, शोभाराम वास्केल, प्रकाश वर्मा, अनीता शर्मा, सलोनी राठौर, मनोज जांगड़े, मनीषा खेड़ेकर, दीपेंद्र पाठक, पराग भोंसले आदि सहित अनेक संस्कृतिकर्मी एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।


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