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गूगल पर उपलब्ध ज्ञान गुरु - शिष्य परम्परा की देन है - प्रो. शर्मा

गुरु शिष्य परंपरा में गुरु तत्व पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी गुरु - शिष्य परंपरा में गुरु तत्व विषय पर केंद्रित थी। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा, हिंदी विभागाध्यक्ष, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने कहा कि ज्ञान के उदय के कारण ही मानव सभ्यता का विकास हुआ। गुरु की सार्थकता है कि ज्ञान को समाहित करके प्रसारण करें। गूगल पर उपलब्ध ज्ञान गुरु परम्परा की ही देन है। विशिष्ट वक्ता राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि पुस्तक ही देव रूप है। गुरु ऋण चुकाने के लिए साहित्य की, संस्कृति की सेवा और ज्ञान फैलाने का कार्य करना चाहिए। अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा ने कहा कि आज दाएं हाथ में कर्म और बाएं हाथ में विजय के लिए अच्छे गुरु की आवश्यकता है।

नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल जी ने कहा कि गुरु अनेक हो सकते हैं। ग्रंथ, प्रकृति, चर , अचर, पशु , पक्षी, बच्चा , बुजुर्ग, कोई भी गुरु हो सकता है। श्रीमती सुवर्णा जाधव, कार्यकारी अध्यक्ष, ने कहा कि व्यास जी के जन्म दिवस पर यह दिवस मनाया जाता है। भारतीय परंपरा में गुरु की कृतज्ञता व्यक्त करते हैं क्योंकि, गुरु हमारा मार्गदर्शन करते हैं। संगोष्ठी का सफल संचालन डॉ. रश्मि चौबे, मुख्य महासचिव, महिला इकाई, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने किया। सरस्वती वंदना डॉ. संगीता पाल , कच्छ गुजरात ने की। अभिनंदन वक्तव्य डॉ.मुक्ता कान्हा कौशिक, राष्ट्रीय प्रवक्ता, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने दिया। डॉ. अनुसूया अग्रवाल, राष्ट्रीय संयोजक, छत्तीसगढ़ ने आभार व्यक्त किया।

उपस्थित जनों ने डॉ. शिवा लोहारिया, महिला इकाई, राष्ट्रीय अध्यक्ष के जन्मदिवस पर उनको बधाई दी। डॉ. दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, अलका जैन एवं अर्चना लवानिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इन्दौर की मणिबाला शर्मा ने गीत सुनाया। उज्जैन की सुनीता राठौर ने स्वरचित कविता सुनाई। इसके साथ ही अनेक गणमान्य जन संगोष्ठी में उपस्थित रहे।

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