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कवि द्वारा लोकोत्तर वर्णन ही काव्य कहला सकता है - प्रो शर्मा ; विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ काव्य लक्षण परम्परा पर परिसंवाद
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कवि द्वारा लोकोत्तर वर्णन ही काव्य कहला सकता है - प्रो शर्मा
विक्रम विश्वविद्यालय में हुआ काव्य लक्षण परम्परा पर परिसंवाद
मुख्य वक्ता पूर्व कुलपति प्रो बालकृष्ण शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय चिंतन में काव्य के सूक्ष्म से सूक्ष्मतर धर्म को जानने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास हुआ है। कवि का कर्म काव्य है और काव्य के निर्माण के लिए कवि स्वयं एकमात्र प्रजापति है। कवि जब लोकोत्तर वर्णन करता है, वही काव्य कहला सकता है। इस वर्णन के लिए शब्द और अर्थ आधार हैं, जो परस्पर अभिन्न होते हैं। आचार्यों में काव्य के आत्म तत्व को लेकर मतभेद है, किंतु शब्दार्थ को सभी ने शरीर माना है। उपकार से युक्त होने पर ही साहित्य बनता है। काव्य के शब्द और अर्थ परस्पर उपकारक होते हैं। रस, अलंकार, ध्वनि आदि को काव्य के आत्मतत्त्व के रूप में प्रतिष्ठा मिली है।
विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि भारतीय आचार्यों ने काव्य को अकाव्य से पृथक करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणाएं दी हैं। भारतीय काव्यशास्त्रीय चिंतन शब्दार्थ केंद्रित होने के साथ ही भावानुभूति पर बल देता है। वर्तमान युग में काव्य के आवरण में बहुत कुछ ऐसा लिखा जा रहा है, जो काव्य कहलाने के योग्य नहीं है। इस दिशा में व्यापक सजगता की आवश्यकता है।
प्रो प्रेमलता चुटैल ने कहा कि भाषा के क्षेत्र में वर्तमान में चिंता की स्थिति है। किशोर वय से ही भाषा के प्रति सजगता जाग्रत हो, इसके लिए व्यापक प्रयास की आवश्यकता है। विद्यार्थीगण अपनी उपाधि के साथ तभी न्याय कर सकते हैं, जब वे भाषा का सजगता के साथ प्रयोग करेंगे।
कार्यक्रम में प्रो गीता नायक एवं प्रोफेसर हरिमोहन बुधौलिया को उनके जन्मदिन पर शॉल एवं श्रीफल अर्पित कर उनका सम्मान किया गया।
इस अवसर पर डॉ श्रीराम सौराष्ट्रीय, तारा वाणिया, संदीप पांडेय, आरती परमार, संतोष चौहान आदि सहित अनेक शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार डॉ गीता नायक ने माना।
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