विषैली ये कैसी लहर चली,
अग्नि - सी फैली गली-गली।
दूर किया कई अपनों को,
चूर किया हज़ारों सपनों को।
सारा जग असहाय लाचार,
जिसने मचाया है हाहाकार।
लोग छिप गए घरों में,
जंग लग गई है परों में।
काम-काज ठप हुए सकल,
पर हम लाएंगे सुनहरा कल।
है तो यह एक बुरी लड़ाई,
पर इसने संस्कृति पुनः जगाई।
अपनों से अपनों को मिलाया,
उनसे फिर परिचय कराया।
अतीत को वर्तमान में बदला,
पर अब क्या पग हो अगला?
इसे रक्षा कवच पहनाना है,
विस्तार इसका कर जाना है।
भागते इस जीवन रूपी रथ पर,
आया कोरोना सबके पथ पर।
इसने तो अपने पैर जमाए,
दिग्गजों को खून के आँसू रुलाए।
पर हम सब न पीछे हटेंगे,
सामने इसके डटे रहेंगे।
नियमों का पालन है करना,
सेवाकर्मी को सम्मान है देना।
सेवा सबकी रंग लाएगी,
जड़ से बीमारी मिट जाएगी।
हमारे नेता का मान रखेंगे,
स्वस्थ जग की रचना करेंगे।
लेखक - अर्चना गरोठकर
पी जी टी (हिंदी)
ज्ञानसागर एकेडमी
उज्जैन
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